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* नेमि व्याह *
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इलम । विवेक जाता रहा हियेसे सबकी जूटी पियें विलम ॥टेक॥ प्रथम तमाखू महा अशुचि है, म्लेच्छ इसको बनाते हैं । छूने योग्य नहीं बिलकुलके अपना तोय लगाते हैं। डंडी चिलममें धूम योगतें जो असंक्य बताते हैं। पीते ही मर जांय सभो वह यह जिन श्रतिमें गाते हैं । होती इसमें अपार हिंसा जरा दया नहीं आती गिलम । विवेक जाता०॥ कौमरिजालोंके साथ पीते गई आबरू ये क्या बनो है । हया दूर कर धर्म लजाते उन्हींमें जा उनकी मत सनी है ॥ वचसे गांजा पियें पिलावें उन्होंने बुद्धि तेरी ये हनी है। स्वास प्रगट कर बदन जलाता प्राण हरणको ये हरफनी है ॥ लगाना दमका बहुत बुरा है पीते तनमें पड़ खिलम । विवेक० ॥ थावर
सकर सहित भरा जल कुवास है ए निधान हुक्का । सुतोय पर सुजीव मरते है पापका ए निधान हुक्का || रोग भिन्न हो जाय कहें मर पीते हैं हम यह जान हुक्का । शुद्ध औषधि करो ग्रहण तुम अशुचि दूर करिये जान हुक्का । सोख सुगुरुकी यही रूपचन्द त्यागो जल्द मत करो विलम | विवेक० ॥
७६ मि व्याह ।
( विनोदीलाल कृत सबैया । )
मौर धरो शिर दूलहके कर कंकण बांध दई कस डोरी । कुंडल काननमें झलकें अति भालमें लाल विराजत रोरी ॥ मोतीनकी लड़ शोभित है छवि देखि लजें वनिता सब गोरी । लाल विनोदी साहियको मुख देखनको दुनियां उठ दौरी ॥ ॥ छत्र फिरे शिर दूलहके तब वारत रत्न शिवादेवी मेया । कृष्ण इसे बल