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* जिनवाणी संग्रह #
भद्र उतेकर ढोरत चमर चले दोऊ भैया ॥ भूप समुद्र विजय सब संग चले वसुदेव उछाह करैया । लाल विनोदके साहिबको बनिता सब हो मिलि लेत बलैया ॥ २ ॥ गोंड़े गये जब नेम प्रभू पशु पक्षिन च पुकार करी है । नाथसे नाथन के प्रतिपाल दयाल सुनो विनती हमरी है ॥ बन्दि पढ़े विललायं सबे बिन कारण विपदा आनि परी है। पूछत लाल विनोदीके साहिब सारथी क्या इन वन्दि भरी है ॥ ३ ॥ सारथीने कर जोड़ कहो सुन नाथ इन्हें जु बिदारेंगे अब । यादव संग जुरे सबरे तिन कारण ये सब मारेंगे अथ || इनके बच्चा बन में बिलपें इनको वे आज संघारेंगे अब । ताते तुमसे फर्याद करें हमरो गति नाथ सुधारेंगे अब ॥ ४ ॥ बात सुनी उतरे रथसे पशु पक्षिनकी सब बन्दि छुड़ाई | जावो सबै अपने थलको हमरो अपराध क्षमा करो भाई ॥ धृक् है ऐसो जोनो जगमें तबही प्रभु द्वादश भावना भाई । देव
कान्तिक आय गये जिन धन्य कहें सब यादव राई ॥ ५ ॥ प्रभु तो बिन ऐसी कौन करे औ को जगमें यह बात विचारे । कौन तजे सुत बन्धु वधू अरु को जगमें ममता निर्धारे ॥ को 'वसु 'कर्मनि जीत सके अरु आप तरे अरु औरन तारे । लाल विनोदके साहबने यश जीत लयो जग जीवन हारे ॥ ६ ॥ नेम उदास भये जबसे कर जोड़के सिद्धका नाम लयो है । अम्बर भूषण डार दिये शिर मौर उतारके द्वार दयो है । रूप धरों मुनिका जय हो तब ही बढ़िके गिरिनारि गयो है । लाल विनोदीके साहिवने तहां पंच महाव्रत योग ठयो हैं ॥ ७ ॥ नेमकुमारने योग लयो जब होनेको सिद्ध करी मन इक्षा । या भवके सुख जान अनित्य सो आदर
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