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* पुकार पचीसी *
जिनेन्द्रमाल संघ राय को दई । अनेक हर्षसों करें जिनेंद्र तिलक पाइये । सुमाल श्रोजिनेंद्रकी बिनोदीलाल गाइये ॥ २३ ॥
दोहा - माल भई भगवन्तको, पाई संग नरिन्द | लालविनोदी उच्च सबको जयति जिनंद ॥ २४ ॥ माला श्री जिनराजकी, पाये पुण्य संयोग | यश प्रगटे कीरति बढ़े, धन्य कहैं सब लोग ॥२५॥ इति ६५ पुकार पच्चीसी ।
दोहा - मै यह भव संसार में, भुगतें दुःख अपार । सो पुकार पच्चीसिका, करें कविन इक द्वार ॥ तेईसा छन्द ।
श्री जिनराज गरीब निवाज सुधारन काज सबे सुखदाई | दीनदयाल बड़े प्रतिपाल दया गुणमाल सदा शिर नाई ॥ दुर्गति टारन पापनिवारन हो भवतारन को भव ताई । वारही वार पुकातु हों जनकी विनतो सुनिये जिनराई ॥ १ जन्म जरा मरणो त्रय दोष लगे हमको प्रभु काल अनाई । तासु नसावनको तुम नाम सुनो हम वैद्य महा सुखदाई ॥ सो त्रय दोष निवारनको तुम्हरे पद सेवतु हाँ चित ल्याई | वारही० ॥ २ ॥ जो इक है. भवको दुख होय तो राख रहों मनको समझाई | यह चिरकाल कुहाल भयो अब लो कहुं अन्त परो न दिखाई | मो पर या जग मांहि कलेश परे दुख घोर सहे नहिं जाई । बारहो ० || ३ || देख दुखी पर होत दयाल है इक ग्रामपती शिर नाई । हो तुम नाथ त्रिलोकपती तुमसे हम अर्ज करो शिर नाई 11 मो दुख दूर करो भव ब कर्मन ते प्रभु लेउ छुड़ाई । बारही० ॥ ५ ॥ कर्म बढ़े
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