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* जिनवाणी संग्रह *
बालबाल बाकड़ा हजार बीस देत हैं । हजार दे पचास परवार फेरि लेत हैं। सु जैसवाल लाख देत माल लेत चोपसों । जु दिलिवाल, दोय लाख देते हैं अगोपसों ॥ १५ ॥ सु अग्रवाल बोलिये जु माल मोह दीजिये । दिनार देहूं एक लक्ष सो गिनाय लोजिये खंडेलवाल बोलिया जु दोय लाख देगो । सुवटि तमोल मैं जिनेन्द्र माल लेउ गो ॥ १६ ॥ जुसंभरी कहें सुमेरि स्वानि लेहु जायकें । सुवर्ण खानि देत हैं चिसोड़िया बुलायके || अनेक भूर गांव देव रायसो चंदेरिका । खजान खोली कोठरीं सु देत हैं अमेरिका ||१७|| सुगौड़वाल यों कहै गयन्द बीस लीजिये । मढ़ाय देव हेमवंत माल मोहि दीजिये ॥ परमारके तुरंग साजि देते हैं बिना गिने । लगाम जोन पाहुड़े जड़ाउ हेमके बने ||१८|| कनौजिया कपूर देत गाड़िया भरायके । सुहीरा मोती लाल देत ओशवाल आयके ॥ सु हूंमड़ा हंकारहीं हमें न माल देडगे । भराइये जिहाजमें कितेक दाम लेउगे ॥१६॥ कितेक लोग आयके लड़ते हाथ जोरिके । कितेक भूप देखिके चले जु बाग मोरि || कितेक सूप यों कहें जु केसे लक्षि देत हो । लटाय माल आपनों सु फूलमाल लेत हौ ॥ २० ॥ कई प्रवीन श्राविका जिनेन्द्रको बधावीं । कई सुकंठ रागसों खड़ी जु माल गावहीं। कई नृत्यकों करें लहैं अनेक भावहीं। कई मृदंग तालपे सुअंगको फिरावहीं ॥ २९ ॥ कहें गुरू उदार घी सुयों न माल पाइये || कराइये जिनेन्द्र यश बिं हूं भराइये ॥ चलाइये जु संघ जात संघो कहाइये। तबै अनेक पुण्यसों अमोल माल पाइये ॥ २२ ॥ संबोधि सर्व गोटिलो गुरू उतारके लई । बुलायकें
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