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* जिनवाणी संग्रह *
इस प्रकार आरता बोलकर नीचे लिखा श्लोक दोहा और मंत्र पढ़कर आरतीको मस्तक चढ़ावे |
ध्वस्तोद्यमान्धोकृत विश्वविश्वमोहान्धकारप्रतिघातदीपान् । दीपे: कनत्काञ्चनभाजनस्थैर जिनेन्द्र सिद्धान्तयतोन यजेऽहम् दाहा - स्वपरप्रकाशनयोति अति, दोपक तमकर होन । जा पूजूं परम पद, देव शास्त्र गुरु तीन ॥ २ ॥
३० आलोचना पाठ |
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चोबीसौं जिनराज
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दोहा - चन्दां पांचो परम गुरु, कहं शुद्ध आलोचना, शुद्ध करनके काज ॥ १ ॥
सखी छन्द ( १४ मात्रा )
इक
सुनिये जिन अरज हमारी । हम दोष किये अति भारी || तिनकी अब निर्वृतिकाजा । तुम शरन लही जिनराजा || २ || वे ते चऊ इन्द्री वा । मनरहित सहित जे जीवा ॥ तिनकी नहिं करुना धारो । निरदई हो घात विचारी ॥ ३ ॥ समरम्भ समारम्भ आरम्भ | मनबचतन कोने प्रारम्भ ॥ कृत कारित मोदन करिकै 1 क्राधादि चतुष्टय धरिकै ॥ ४ ॥ शत आठ जु इम भेदन | अघ कीने परछेदते ॥ तिनकी कहुं को लो कहानी। तुम जानत केवल ज्ञानो ॥ ५ ॥ विपरीत एकांत विनयके । संशय अज्ञान कुनयके ॥ वश होय घोर अघ कीने। बचते नहि जात कहीने ॥ ६ ॥ कुगुरुनकी सेवा कीनी। केवल अदयाकरि भोनो | या विधि मिथ्यात भ्रमायो | चहुंगति मधि दोष उपाया ॥ ७ ॥ हिंसा पुनि झूठ जु चोरी | परवनितासों द्गजोरी | आरम्भपरिग्रह भीनो । पुन पाप