________________
संसार दुख दर्पण |
Y
जियने, सुरगति सुन्दर पाई । दुख पायो अधिकाई ॥ बदन किरायो । देखा २ सुख भोग पराये, 1
वह जिय जाने, या प्रभु केवल ज्ञानी ॥ कुछ शुभ भावन कर या पर मन इच्छित सुख नहि पायो, रंक भयो, लख सम्पत परकी, झुर कुर कर चिन्ता, दुख पायो 1
1
1
बहु दुख माना, चिन्ता कीनी, रुदन किया दुःबदाई | जब मृत्युसे मास छः पहिले, गलमाला मुरझाई ॥ हा हा ! यह सुख भोग छुटेंगे अब होगी थिति पूरी इच्छा मनकी पूरी नाहीं, रह गई हाय अधूरी ॥ कोई पुन्य उदय जब आयो, तब मानुष गति पाई । कर्म उदय कर या गति मांदो, कष्ट अनेक लहाई ॥ पुत्र बिना दुखिया नर कोई, विन्तत मनमें ऐसे 1 मम धन संपति कौन भोगवे, नाम चलेगा कैसे ॥ होत पुत्र मरजाय दुखी तब, यह कह रुदन मचावे | जो ना होता तो अच्छा था, कष्ट सहा नहि जाबें ॥ जोयो पुत्र भयो दुर्व्यसनी धन सम्पति सब खोयो । अब दुख मानत मातपिता सब, कुलका नाम डुबोयो || मित्र स्वारथी स्वारथ सावन कर आंखें दिखलावे । बैरो बनकर धन यश प्राणन, का ग्राहक बन जावे ॥ कुलटा नारी कहल कारणी, कर्कश बचन उबारे । दोऊ कुलकी लाज गंवावे, पतिको विष दे मारे । वेश्यागामी, परतिय लम्पट, ज्वारी, मांसाहारी । मदु मतवाले पतिसे दुखिया है पतिबरता नारी ॥ पुत्र पिता पर अरि सम टूट, या यह मर जाये । पिता पुत्र पर रुष्ट होय कर, घर से दूर करावे ॥ भाई भाई लड़त स्वान सम, हैं प्राणनके लेवा | धार कषाय उपाधि मंचाने, हैं दोऊ दुख देवा बिन दुखिया बिन नारी पति कोई कोई बाला वृद्ध पती पर,
विधवा नारि पती
1
३०