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पर्युषण पर्वनावली।
४५० वाहिये ॥ ४ ॥ नर भव महा दुर्लभ रतन मुश्किलसे “विद्या" है मिला । तो क्या बिना तपके इसे, योंही गमाना चाहिये ॥ ५॥
उत्तम त्याग ( राग-बंजारा ) मन उत्तम त्याग समाया, नरभव जीवनका पाया। है दान चार परकारा, दे औषधि दान अहारा ॥ टेक ॥ दिल अभय शास्त्र मनमाया, नरभव जीवनका पाया । तप, राग द्वेष, निरवारे, मेरे कर्म शत्रुको मारे । मुनियोंने देह तपाया,मेरे मन त्याग सुहाया।२।। ये जीवन बहु दुखदाई; ये विपदा तप बिन आई। क्यों पाप कूप खुदाया, नर भव जीवनका पाया ॥ ३ ॥ दुनिया भी अन्तमें न्यारी “विद्या" निश्चय है ख्वारो। कह प्रभुसे नेह लगाया, मेरे मन त्याग समाया ॥४॥
(उत्तम आकिचन) ( रघुवर कौशल्याके लाल मुनिकी यज्ञ रवाने वाले) उत्तम आकिंवन व्रतधार जैनी मात्र कहाने वाले । जनी मात्र कहाने वाले, त्यागका रूप दिखाने वाले ॥ १ ॥ त्यागो चौबिस परिप्रह भेद । फिर घर तीरथ सिखर सम्मेद करना अवश्यक नहीं खेद, धर्मकी बाढ़ बढ़ाने वाले ॥ २॥ निश्चय जिनवाणी श्रद्धान, जगमें जैनी धर्म प्रधान । कहते बुद्धिवान गुणवान, जग उपदेश सिखाने वाले॥ ३॥ ये है दुस्खदाई संसार, इसमें सुखपाना दुश्वार । जीवके दुश्मन कई हजार, पग पग दुःख दिलाने वाले ॥४॥ है दुनियां निस्सार जायेंगे सब कोई हाथ पसार । “विद्या" दान चार परकार, मुक्तिकी राह बताने वाले ॥५॥ . मोट-भी मतो वियावतो कृत "विद्याविनोद" नामक बड़ा संग्रह अलग तबार होगा।