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पयुषण पव भजनावली।
४५५ मूकाला । ये मंत्रोंमें मंत्र निराला,सुखसे पूर पूर पूरब सब सुन लो गैनी भाई, ये छल है बहु दुख दाई । है निश्चय धरम सहाई, विपदा चूर चूर चूर ॥ ३ ॥ कोई रंचक दगा न करना, छलियासे डरते रहना । सब मनमें सदा सुमरना, जिनका नूर नूर नूर ॥४॥ हे सरल स्वभावी जैनी, इस छलकी धारा पैनी। “विद्या" मत चढ़ये नसेनी, श्रावक शूर शूर शूर ॥ ५॥
उत्सम सत्य
जगत में उत्तम सत्य महान ! बुद्धिवान गुणवान ॥जगतमें। झूठ बचन नहिं मुखसे बोलो, झूठ महा दुख खान जगतमें॥ दुनियामें है सत्यकी महिमा, सत्य ही मंत्र महान ॥जगतमें।। दृढ़ प्रतिज्ञ बन जो सत बोले तो निश्चय कल्याण ॥ जगतमें० ॥ पर विश्वास घात न करना,और न करना मान ॥ जगतमें || पर वस्तुमें मन न लुभानो, चाहे जाचे प्राण ॥ जगतमें० ॥ सत्य सत्य सब नित्य हो सुमरो, गाकर उसका गाम ॥ जगतमें ॥ उत्तम सत्यकी माला जपलो,धरफर हृदे ध्यान ॥जगतमें॥हाथ जोड़ सब शीश नवावें, दे प्रभु यह बरदान ॥जगत में ॥ विद्या विनय यही है प्रभुजी, पाऊ उच्च स्थान ॥ जगतमें ॥
उत्तम शौच जैनी धारियो जी,उत्तम शौच आज मन भाया ॥टेका दुख दाई ला. लच दुख देता सुनलो उसका हाल । सच्चे मनसे लोभ त्याग दो ये जोका जंजाल ॥१॥टेक॥ कौन कहत है लोभ बिना तुम,होवोगे कंगाल । दूर हटाओ दिलसे इसको कैसा रही ख्याल ॥२॥ टेक॥ निर्लोभी बननेकी शिक्षा प्रभुसे लेलो आज । उत्तम शौचकी जाप