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निशिमोजान था।
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जंबूदीप जगत विख्यात । भरत खंड छवि कहिय न जात ॥ तहां देश कुरु जांगल नाम। हस्तनागपुर उत्तम ठाम ॥ यशो भद्र भूपत गुण वास। खदत्त द्विज प्रोहित तास । सश्वमास तिथि दिन आराध । पहिली पड़वा कियो सराध बहुत बिनय सों नगरी तने। न्योत जिमाये ब्राह्मण धने ॥ दान मान सवहीकों दियो । आप विप्र भोजन नहिं कियो । इतने राय पठायो दास । मोहित गयो रायके पास ॥ राज काज कछु ऐसो भयो। करम करावत सब दिन गयो । घरमें रात रसोई करी। चुल्हें ऊपर हांडी धरी । हींग लैन उठि बाहर गई। यहां विधाता औरहीठई । मैंडफ उछल परो ता माहि । त्रिया तहां कछु जानो नाहिं । वेंगनछोंक दिये तत्काल । मैंडक मरो होय बेहाल ॥ तबई विप्र नहि आयो धाम । धरी उठाय रसोई ताम ॥ पराधीनकी ऐसी बात । औसर पायो आधी रात॥ सोय रहे सब घरके लोग । आग न दीवा कर्म संयोग ॥ भूखो प्रोहित निकसे प्रान । ततछिन बैठो रोटी खान || बेगन भोले लीनो ग्रास मेंडक मुहमें आयो तास ॥ दांतन चले वषा नहिं जबै । काढ़ धरो थालीमें तब ॥ प्रात हुए मैंडक पहिचान । तो भी विप्र न करी गिलान ॥ तिथि पूरी कर छोड़ी काय । पशुकी योनी उपजो आय ॥ सोरठा छन्द-१ घुघू २ काग ३ विलाव, ४ सावर ५गिरत्र पखेरुमा । ६ सूकर ७ अजगर भाष, ८ घाघ ८ गोह जलमें १० मगर । दश भव इहि विधि थाय, दसों जन्म नरकहि गयो । दुर्गति कारण पाय, फली पाप बट बीजयत्। दोहा-निशि भोजन करिये नहीं, प्रगट दोष अविलोय।
परभवसब सुख संपजे यह भव रोग न होय॥