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जिनवाणी संग्रह। यह प्रत कीनो अमिराम । तिन पद लयो सुक्नको धाम । ५४ । यह प्रत पूर्व महा फल लियो। प्रथम ऋषम जिनवरने कियो। अनन्तवीर्य अपराजित पाल । चक्रवर्ति पदवी भई हाल । ५५ । श्रीपाल मैना सुन्दरी । प्रत कर कुष्ट व्याधि सब हरी ॥ बहुतक नर नारी ब्रत करो। तिन सब अजर अमर पद धरो। ५६ । सुनो विधानराय हरसेन । अति प्रमोद मुख जपे बेन ॥ सब परि. वार सहित व्रत लयो। मुनिवर धर्म प्रीतिकर दयो । ५७ । बत कर फिर उद्यापन करो। धर्म ध्यान कर शुभ पद धरो॥ अन्त समाधिमरणको पाय। भयो देव हरसेन सुराय । ५८ । पर्यायान्तर जैहैं मुक्ति।ौंणिक सुनो सकल व्रत युक्ति ॥ गौतम कहो सकल अधिकार । सुनो मगधपति चित्त उदार । ५८ । जो नर नारी यह व्रत करें । निश्चय स्वर्ग मुक्ति पद धरै ॥ संकट रोग शोक सब जाहिं । दुःख दरिद्रता दूर बिलाहिं । ६० । यह व्रत नन्दीश्वरकी कथा। हेमराज सु प्रकाशी यथा ॥ शहर इटावा उत्तम स्थान । श्रावक करें धर्म शुभ ध्यान । ६१ । सुने सदा ये जैन पुराण । गुणीजनोंका राखें मान । तिहिठा सुना धर्म सम्बन्ध । कीनी कथा चौपाई बंध । ६२ । कहें सुनें देचे उपदेश । लहें भावसे पुण्य अशेष ॥ जाके नाम पाप मिट जाय । ता जिनवरके बन्दों पांय ॥ ६३ ॥ श्रीनन्दीश्वर व्रत कथा सम्पूर्णम् ॥ , (१६) निशिभोजन कया। दोहा-नमों सारदा सार बुध, करें हरै अघ लेप।
निशि भोजनभुजकी कथा, लिखू सुगम संक्षेप ॥१॥