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जिनवाणी संग्रह। अपने घर आए हैं। परवरिस पा बड़े हुये ध्याहने योग्य पाए हैं। बनी दुलहिन कमला दुलहा धनदेव भाई है। मिला संयोग जुर ऐसा बहिन भाई विवाहे हैं। भोग भोगवे भाई बहिन मिलि विधना तेरी बलिहारी। अठारह नाते हुये हैं एक जन्मही मैं जारी ॥२॥ समय पाय व्योपार हेत धनदेव गया उज्जैन नगर । देव योगसे मई निज मातासे दो चार नजर || अनरथ ऐसा हुआ किया विभचार जु दोनोंने मिलकर । भेद न जाना भोगने भोग लगे माता सुत जुर ॥ कई दिन तक वहां धनदेवको गणिका रमाया में। रोग संयोग जुग ऐसा वरुण इक लाल जाया है। कहीं कमलाने यह सब भेद मुनिवर सेती पाया है। पालना मलता चालक वरुण जहँ पर बताया है। पहुंची सो उज्जैन नगर जहँ रचना देखी संसारो। अठारह नाते हुये हैं एक जन्महो मै जारी ॥३॥ हाय हाय सो करे अरे विधना तूने कीनी क्यारी। होते ही से मुझे क्यों नहिं तूने गर्दन मारी ॥ क्या कहके अब झुलाऊ इस वीरनको षता विधातारी। छै नाते हैं मेरे इस बालकसे सुन महतारी ॥ प्रथम तो पुत्र है मेरा जु मुझ भरतार से उपजा । तनुज धनदेव भाईका लगा जिससे भतीजा है ॥ मेरी तेरी एक है माता जगा इस रीतिसे भ्राता है। मेरे मालिकका लघु भाई लगा देवरका नाता है ॥ माता मेरीका तू देवर चवा इस तरह होता है । सौतके पुत्रका तू पुत्र इस नातेसे पोता है ॥ छहनातेकर विरन झुलाऊ
कथा करी जाहर सारी। अठारह नाते हुए हैं एक जन्म हो मैं जारी ॥४॥ गणिका पतिसे हुआ पिता जिसलघु भाई मुझ वाचा है। बचा पिता सो सगा धनदेव लगा मो वादा है । मेरा मालिक