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भठायनाते।
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चौ दुइ इक बरन विचारे । काया तेरी दुखकी ढेरी शान मई तू सारे ॥८॥ अजर अमर निज गुण सो पूरे परमानन्द मुभावे । आनन्द कन्द चिदानन्द साहब तीन जगतपति ध्यावे ।। क्षुधा तृषादिक होइ परीषह सह भाव सम राखे । अतीवार पांचो सब त्यागे शान सुधारस चाखे ॥६॥ हाड़ मांस सब सूखि जाय जब धरम लीन तन त्यागे । अदभुत पुण्य उपाय सुरगमें सेज उठे ज्यों जागे। तह तैं आवे शिवपद पावे बिलसे सुख अनन्तो। धानत यह गति होय हमारी जैन धरम जयवन्तो ॥ १० ॥ (२८) अठारहनाते लिख्यते ।
(श्रीयुत कुन्दनलाल कृत कोई किसीका सगा नहीं झूठी सब नातेदारी। अठारह नाते हुए हैं एक जन्मही मैं जारी ॥ टेक ॥ मालवदेश उज्जैन शहरमें सेठ सुदत्त वसे भारी, वसन्ततलिका वेसवा जिन्होंने निज घरमें डारी। रोग सहित जब भई बेसवा सेठि अरुचि चितमें धारी, गर्भवतीको महलसे छिनमें कर दीनी उनने न्यारी॥
शैर-निरादर हो गणिका वहां से घर अपने आई है। खड़ी दिलगीर हो सोचें पड़ी कैसी तबाहो है ॥ जने लड़का और लड़की जोडले ऐसी भाई है । जुदे इनको करू घरसे जभी मेरी रिहाई है ।। सुतडारा उत्तरदिशि माहीं तनुजा दक्षिणदिशि डारी । अठारह नाते हुए हैं एक जन्मही मैं जारी ॥१॥ प्रयागवासी बनजारेकी लड़की
पर जा नजर पड़ी। उठागोदमें नाम कमला जा रक्खा बिसी घड़ी ।। 'दूजे बनजारे सुभद्रकी लड़के पर जा द्दष्टि पड़ी। उठा गोदमें नाम धनदेव रखा परवरिस करी ॥ ले लड़का अरु लड़की दोनों के