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* श्रीसम्मेदशिखरमाहात्म्य *
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गौतमस्वामी हे राजन् ! शिखरजीकी यात्रा कर. नेवाला फिर संसारमें अधिक नहीं भटकता। उनचास भव लेकर वह जीव पचासवें भव अवश्य ही सिद्धस्थानमें जाकर अजर अमर अखंड सदा जागती जोत होकर अवल रहता है, यह नियम है । इसके सिवाय यात्रा करनेवाला नरक तिथंच गतिमें तथा स्त्रीपर्यायमें भी जन्म नहीं लेता।
श्रेणिक-यदि ऐसा है, तो भगवन् रावणने शिखरजीकी यात्रा की थी, फिर उसे नरकगति क्यों प्राप्त हुई ?
गौतम-रावण शिखरजीकी यात्रा करनेके लिये नहीं किन्तु त्रैलोक्यमंडल हाथीको पकड़नेके लिये मधुवन गया था। इसलिये वह यात्राके फलका भागी न हो सका।
श्रेणिक-भगवन् ! यदि कोई बिना भावसे शिखरजीकी यात्रा करे, तो उसकी नरक तिर्यंच गति छूटे कि नहीं ?
गौतम - राजन् ! जिस प्रकारसे बिना भावसे खाई हुई मिश्री मीठी लगती है, और दवाई रोगको शांत करती है, उसी प्रकारसे बिना भावसे की हुई यात्रा भी ऐसा नहीं है कि, फलवती न हो।
श्रणिक-भगवन् ! आपने कहा कि, भव्यको यात्रा होती है, परन्तु अभव्यको नहीं होती, सो यह बतलाइये कि, खास शिखरजीमें भीलादिक तथा पृथ्वी जल वनस्पति एकेन्द्रियादिक जोव राशि हैं, वे सब भव्य हैं अथवा अभव्य ?