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________________ निलय पोर व्यवहार ] [१३ अकेला हो तो कोई रुपया किलो लेने को भी तैयार नहीं होता। इसप्रकार हम देखते हैं कि छिलके की कीमत मींगी के साथ रहने में ही है, अकेले में नहीं। उसीप्रकार व्यवहार की कीमत भी निश्चय के प्रतिपादकत्व में ही है, निश्चयपूर्वक अर्थात् निश्चय के साथ होने में ही है, अकेले में नहीं। निश्चय का साधक-प्रतिपादक होने से ही उसे जिनवाणी में स्थान प्राप्त है। किन्तु निश्चय की कीमत व्यवहार की संगति में घट जाती है और अकेले में बढ़ जाती है। यही कारण है कि निश्चय व्यवहार का निषेध करता है, निषेधक है। यहाँ एक बात यह भी जान लेने योग्य है कि बादाम का छिलका यदि मींगी के संयोग में पच्चीस-तीस रुपया किलो बिक जाता है, तो वह कीमत उसे कुछ मुफ्त में नहीं मिल गई है, उसने उसकी पूरी-पूरी कीमत चुकाई है। सर्दी, गर्मी, बरसात सब-कुछ अपने माथे पर झेली है, और भीतर मींगी को पूर्ण सुरक्षित रखा है, उसे पांच तक नहीं माने दी है। सारी विपत्तियां अपने माथे पर झेलकर मींगी को पूर्ण सुरक्षा प्रदान की है। अपना कर्तव्य पूरी तरह निभाया है। यहां तक कि जान की बाजी लगाकर मींगी की सुरक्षा की है। छिलके की प्रतिज्ञा है कि जबतक वह साबुत है तबतक मींगी का कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता, खा नहीं सकता; खाना-बिगाड़ना तो बहुत दूर, उसे कोई छू भी नहीं सकता। यदि कोई चोट करता है तो छिलका पहले अपने माथे पर झेलता है; चाहे स्वयं टूट जावे, फूट जावे; पर जबतक वह अटूट है-अफट है, समझिये मींगी सुरक्षित है। इतनी कीमत चुकाने पर उसे कीमत मिली है, उसे आप मुफ्त की क्यों समझते हैं ? उसीप्रकार व्यवहार ने अपनी पूरी शक्ति से निश्चय का प्रतिपादन किया है, भले ही निश्चय उसका निर्दयतापूर्वक निषेध करता रहा, पर उसने अपने निश्चयप्रतिपादकत्व स्वभाव को नहीं छोड़ा, तब कहीं जाकर उसे जिनवाणी में स्थान प्राप्त हुआ है । ऐसी बात सुनकर कुछ लोग कहते हैं कि यदि यह बात है, व्यवहार इतना वफादार है, तो फिर उसका निषेध क्यों ? भाई ! उसकी सार्थकता उसके निषेध में ही है, क्योंकि यदि उसका निषेध न हो तो वह अपने काम में भी सफल नहीं हो सकता है।
SR No.010384
Book TitleJinavarasya Nayachakram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1982
Total Pages191
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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