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________________ जिनवाणी म प्रयुक्त नयचत्र अत्यन्त जटिल है उम गहराई में ममभने के लिए उपयोग को थोडा मधम बनाना हागा, अत्रि दिखाकर पिण्ड छुडाने माम नहीं चलगा / जब प्रात्मानुभव प्राप्त करन व निा कमर कमी है, ना थोडा-मा पुम्पार्थ नयपथना के ममं के ममभने " भी लगाइये। टिल नयचर का मममें बिना जिनवारगी के अवगाहन करन म कठिनाई ना होगी ही; माथ ही पद-पद पर कारें भी उपस्थित होगी, जिनका निगवरगा नय-विभाग / गमभन पर ही मभव होगा।' (प्रस्तुत ग्रन्थ, पृष्ट 67) अत हमाग अन गध हे कि थाडा ममय विषय-क्पाया के पापा म निकालकर निचपन्यवहार के भंद-प्रभेदो मा ममझने में लगाय, बहाना न बनाय, बुद्धि कम हान की बाते भी मन कीजा, क्यावि दुनियादारी में ता प्राप बहन चनृर है। आप अपने कुलकों द्वार। इनके अध्ययन का निध भी मत कीजिय। हम आपमे ममयमार का अध्ययन लादकर दमे पढने का नही कह रह है, हम ना दुनियादारी के गोरख-धध मे थाडा ममय निकालकर - मक अध्ययन म लगान की प्रेग्गा द रह है। उमपर भी यदि प्राप इनका परिजान नही करना चाहत ना मन करिये, पर इनके अध्ययन का निरर्थक बनाकर दूमगे को निमन्माहित ता न कीजिय / जिनवागगी की इस अद्भुत कथन शैली के प्रचार-प्रसार म प्रापका इतना महयाग ही हमे पर्याप्न हागा। (प्रस्तुत ग्रन्थ, पृष्ठ 66)
SR No.010384
Book TitleJinavarasya Nayachakram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1982
Total Pages191
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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