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निश्चय - व्यवहार : विविध प्रयोग प्रश्नोत्तर ]
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अपने में ही मगन ज्ञानियों के अन्तर से सहज प्रस्फुटित होते है । इन्हें भाषा और शैलियों की चौखट में फिट करना आसान नहीं है, ये कथन लीक पर चलने के आदी नहीं होते। किसी विशिष्ट लीक पर चलकर इनके मर्म को नहीं पाया जा सकता । मात्र पढ पढ़कर इनका मर्म नहीं पाया जा सकता, इनके मर्म को पाने के लिए अनुभूति की गहराइयों में उतरना होगा ।
( ३ ) प्रश्न : - यदि ऐसा मान लिया जाय तो समस्या हल हो सकती है कि प्रथमशैली आगम की है और द्वितीयशैली अध्यात्म की ।
उत्तर :- नहीं, भाई ! यह दोनों ही शैलियाँ अध्यात्म की ही है । गम और अध्यात्म की शैली का अन्तर नहीं जानने के कारण ही आप ऐसी बात करते हैं ।
आगम और अध्यात्म शैली मे मूलभूत अन्तर यह है कि श्रागम शैली में नयों का प्रयोग छहों द्रव्यों की मुख्यता से होता है, जबकि अध्यात्म शैली आत्मा की मुख्यता से नयों का प्रयोग होता है । आगम की शैली में वस्तुस्वरूप का प्रतिपादन मुख्य रहता है और अध्यात्मशैली में आत्मा के हित की मुख्यता रहती है ।
मुख्यरूप से प्रागम के नय द्रव्यार्थिक, पर्यायाथिक, नैगम, सग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़ तथा एवंभूत है । उपनय भी आगम नयों में ही आते हैं, जिनके भेद सद्भूतव्यवहारनय, असद्भूतव्यवहारनय और उपचरित-प्रसद्भूतव्यवहारनय हैं ।
इसीप्रकार मुख्यरूप से अध्यात्म के नय निश्चय और व्यवहार है । यद्यपि आगम के नयों में भी आत्मा की चर्चा होती है, क्योंकि छह द्रव्यों में आत्मा भी तो आ जाता है; तथापि आगम के नयों मे जो श्रात्मा की चर्चा पाई जाती है - वह वस्तुस्वरूप के प्रतिपादन की मुख्यता से होती है, श्रात्महित की मुख्यता से नहीं ।
यद्यपि 'वस्तुस्वरूप की समझ भी श्रात्महित में सहायक होती है, तथापि वस्तुस्वरूप की दृष्टि से किये गये प्रतिपादन में और आत्महित की दृष्टि से किये गये प्रतिपादन में शैलीगत अन्तर अवश्य है ।
यद्यपि निश्चय - व्यवहारनय मुख्यरूप से अध्यात्म के नय है, तथापि जब उनका प्रयोग आत्मा को छोड़कर अन्य द्रव्यों के सन्दर्भ में होता है, तो आगम के नयों के रूप में होता है ।
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