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________________ व्यवहारनय : कुछ प्रश्नोत्तर ] [ १३५ नय में मात्र उपचार ही प्रवत्तित होता है, उपचार में भी उपचार नही; उस असद्भूतव्यवहारनय को उपचरित-असद्भूतव्यवहारनय से पृथक बताने के लिए अनुपचरित-असद्भूतव्यवहारनय के नाम से भी अभिहित किया जाता है। (७) प्रश्न :- नयचक्र के उक्त कथन में व्यवहारनय को उपनय से उपजनित कहा गया है ? अभी तक तो उपनय की बात आई ही नहीं। उत्तर :- एकप्रकार से व्यवहारनय ही उपनय है, क्योंकि उपनयों के जो भेद गिनाए गये हैं, वे सब एकप्रकार से व्यवहारनय के ही भेद-प्रभेद हैं। नयों के भेद-प्रभेदों की चर्चा करते समय नयचक्र' में पहले तो नयों के नय और उपनय ऐसे दो भेद किए हैं। फिर नय के नौ प्रकार एवं उपनय के तीन प्रकार बताये गये है। द्रव्याथिक और पर्यायाथिक - ये दो तो मूलनय एवं नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़ तथा एवंभूत - ये सात उत्तरनय; इसप्रकार कुल मिलाकर ये नौ नय बताये गये है, जिनकी चर्चा आगे विस्तार से की जावेगी। सद्भूतव्यवहार, असद्भूतव्यवहार तथा उपचरित-असद्भूतव्यवहार - ये तीन भेद उपनय के बताये गये हैं। तथा सद्भूतव्यवहारनय के शुद्ध और अशुद्ध – ऐसे दो भेद किये गये हैं। इसप्रकार हम देखते हैं कि व्यवहारनय के जो चार भेद बताये गये थे, उनमें और इनमें (उपनयों द्वारा किए गये भेदों में) कोई अन्तर नहीं रह जाता है। सद्भूतव्यवहारनय के तो जिसप्रकार दो भेद वहाँ बताये गये थे, वैसे ही यहाँ भी बताये गये हैं। असद्भूतव्यवहारनय के वहाँ अनपचरितअसद्भूतव्यवहारनय एवं उपचरित-असद्भूतव्यवहारनय - इसप्रकार दो भेद किये गये थे और यहाँ उन दोनों को स्वतंत्ररूप से स्वीकार कर लिया गया है । बस, मात्र इतना ही अन्तर है। १ देवसेनाचार्यकृत श्रुतभवनदीपकनयचक्र एवं माइल्लधवलकृत द्रव्यस्वभावप्रकाशक नयचक्र - इन दोनों में ही उक्त कथन पाये जाते हैं ।
SR No.010384
Book TitleJinavarasya Nayachakram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1982
Total Pages191
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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