SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 101
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निश्चयनय : कुछ प्रश्नोत्तर ] [ ६३ अशुद्धनिश्चयनय के सर्वथा निषेध से आत्मा में रागादिभाव रहेगे ही नहीं। ऐसा होने पर आस्रव, बंध, पुण्य और पापतत्त्व का अभाव हो जाने से संसार का ही प्रभाव हो जावेगा। संसार का अभाव होने से मोक्ष का भी अभाव हो जायेगा, क्योंकि मोक्ष संसारपूर्वक ही तो होता है। दूसरे रागादिभाव भी प्रात्मा से वैसे ही भिन्न सिद्ध होंगे, जैसे कि अन्य परद्रव्य ; जो कि प्रत्यक्ष से विरुद्ध है। मृत्यु के बाद देहादि परपदार्थ यहाँ रह जाते हैं, पर राग-द्वेष साथ जाते हैं। एकदेशशुद्धनिश्चयनय नही मानने से माधकदशा का ही प्रभाव मानना होगा। साधकदशा का नाम ही तो मोक्षमार्ग है, अतः मोक्षमार्ग ही न रहेगा। मोक्षमार्ग नही होगा तो मोक्ष कहाँ से होगा? मोक्ष और मोक्षमार्ग के अभाव में संवर, निर्जग और मोक्षतत्त्व की भी सिद्धि नहीं हो सकेगी। __इसीप्रकार शुद्धनिश्चयनय नही मानने पर क्षायिकभाव के अभाव होने से मोक्ष और मोक्षमार्ग का अभाव सिद्ध होगा, क्योंकि फिर तो एक मात्र परमभावग्राही शुद्धनय रहेगा और उसकी दृष्टि से तो बध-मोक्ष हे ही नही। दूसरी बात यह है कि परमशुद्धनय के विषयभूत त्रिकाली शुद्धात्मा के स्वरूप का निश्चय भी शुद्धनय के विषयभूत क्षायिकभावरूप प्रकट पर्यायों के आधार पर होता है। 'सिद्ध समान सदा पद मेरो' मे आत्मा के त्रिकाली स्वभाव को सिद्धपर्याय के समान परिपूर्ण ही तो बताया गया है। अतः यदि क्षायिकभाव को विषय बनानेवाले शुद्धनय को स्वीकार न करेंगे, तो फिर परमशुद्धनय के विषयभूत त्रिकाली द्रव्य का निर्णय कैसे होगा ? अतः यदि सर्व लोप की इस महान आपत्ति से बचना चाहते हो तो ऐसे एकान्त का हठ मत करो। (११) प्रश्न :- यदि ऐसी बात है तो आप कथंचित् भी निषेध क्यों करते हो? उत्तर :- यदि कथंचित् भी निषेध न करें तो अनादि का छिपा हुआ त्रिकाली परमतत्त्व छिपा ही रहेगा। वह हमारी दृष्टि का विषय नहीं बन पायेगा। जब वह दृष्टि का विषय नहीं बनेगा तो मोक्षमार्ग का प्रारंभ ही न होगा और जब मोक्षमार्ग का प्रारंभ नहीं होगा तो मोक्ष कैसे होगा?
SR No.010384
Book TitleJinavarasya Nayachakram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1982
Total Pages191
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy