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जिनवाणी
जो लोग शांत, तटस्थ भावसे जैन दर्गनके ईश्वर सम्बन्धी, सिद्धान्तका मनन करेंगे उन्हें यह प्रतीत हुए बिना नहीं रहेगा कि, जैन दर्शन भारतवर्षका एक सुप्राचीन दर्शन है। जैन दर्शनको बौद्ध दर्शनके पञ्चात्का तो कह ही नहीं सकते, परन्तु यदि कोई उसे बुद्धका समकालीन कहे तो भी ठीक नहीं है । भारतवर्षमें, भूतकालके किसी अज्ञात युगमें, जब ईश्वर संबन्धी विविध सिद्धान्तोंका प्रचार हुवा था, उसी युगमे - प्राचीन कालके अन्धकाराच्छन्न वातावरण में - जैन दर्शनने ईश्वर
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सम्बन्धी एक नवीन सिद्धान्त - नूतन प्रकाश विश्वको दिया था ।
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