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. जिनवाणी मीमांसक भी मानते हैं कि व्यासिज्ञानसे भूत, भविष्य, वर्तमान, दूर, अनागत आदि सभी विषयोंमें प्रतीति-सी उत्पन्न होती है। वे यह भी स्वीकार करते है कि आगमप्रमाणके आधार पर भूत, भविष्य तथा दूर दूरके पदार्थोकी उपलब्धि हो सकती है । इसका अर्थ यही है कि जीवमें समस्त पदार्थीको जान लेनेकी शक्ति है। मीमांसकों द्वारा स्वीकृत गमप्रमाण स्वयं ही पर्यान है।
जैन कहते है कि समस्त पदार्थों का ज्ञान प्रत्यक्ष रूपसे नहीं हो सकता, ऐसा मानलेना नहीं चाहिये। हमारी प्रत्यक्ष इन्द्रिय अनिन्द्रिय है अर्थात् उसे मनकी अपेक्षा रहती है। यही कारण है कि यह बहुत थोड़े
और ल्यूल पनायीकाही ग्रहण कर सकती है। योगियोंकी प्रत्यक्ष इन्द्रियको मनकी अपेक्षा नहीं रहती, जिससे वे बहुतसे अतीन्द्रिय सूक्ष्म पदार्थाका अवलोकन कर सकते हैं। जिनका कर्म-आवरण हट चुका है ऐसे महापुरुषके प्रत्यक्ष ज्ञानमें यदि विखके समस्त पदार्थ हत्तामलक हों तो इसमें शंकाकी क्या बात है? रामयणादिमें लिखा है कि, वैनतेय, सैकड़ों योजन दूरकी वस्तुओंको प्रत्यक्ष देख सकता था । चील आदि पक्षी बहुत दूरकी वस्तुओंको, पासमें हुई वस्तुओके समान देख सकते हैं। हममें इस समय प्रत्यक्षशक्ति मर्यादित है, सही; परन्तु उसमें अत्यधिक शक्ति भरी हुई है इसका कौन इन्कार कर सकता है ? मुख्य वात यही है कि आवरणोत्पादक -- प्रतिबन्ध करनेवाले-कर्म दूर होने चाहिये। कर्म अला होते ही प्रत्यक्ष ज्ञानरूपी सूर्य चमकने लगेगा। . जैनाचायोका मत है कि आगम भी सर्वज्ञताको सिद्ध करता है, उसमें अन्योन्याश्रय या अनवस्था दोष नहीं है। सर्वज्ञा आगम-प्ररूपक