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जिनवाणी
बुद्धादेर्धर्मोऽधर्मादिगोचरः ।
उपदेशो हि अन्यथा नोपपद्येत सार्वज्ञं यदि नाभवत् ॥ बुद्धादयो हावेदनास्तेपां वेदादसम्भवः । उपदेशः कृतोऽतस्तव्यमोहादेव केवलात् ॥ ये तु मन्वादयः सिद्धाः प्राधान्येन त्रयीविदाम् | त्रयीविदाश्रितग्रन्थास्ते वेदमभवोतयः ॥
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भावार्थ- प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम, उपमान और अर्थापत्ति प्रमाण'पञ्चकसे सर्वज्ञका अस्तित्व सिद्ध नहीं होता । प्रत्यक्ष से तो केवल निकटचत पदार्थ हो देखे जाते है। अनादि, अनन्त, अतीत, अनागत, वर्तमान सूक्ष्मादि स्वभावविशिष्ट समस्त पदार्थ किस प्रकार प्रत्यक्ष हो सकते है ? अब जब कि समस्त पदार्थोंका ज्ञान प्रत्यक्ष रूपसे -होना संभव नहीं है तव सर्वज्ञता रूप ज्ञान और सर्वज्ञ पुरुष भी किस प्रकार प्रत्यक्ष के विषय हो सकते है । जैसे प्रत्यक्ष द्वारा सर्वज्ञताका बोध नहीं हो सकता उसी प्रकार सर्वज्ञको भी उपलब्धि असम्भव है । अनुमानसे भी सर्वज्ञकी सिद्धि नहीं हो सकती, क्यो कि अनुमान प्रमाणका आधार हेतु तथा साध्यके अविनाभाव संबन्ध पर है। यहां सर्वज्ञ साध्य है । इस साध्यके साथ किसी भी हेतुका ऐसा संवन्ध नहीं दीखता कि जिससे सर्वज्ञका अनुमान हो सके। अत एव अनुमानसे भी सर्वज्ञको सिद्धि नहीं हो सकती । सर्वज्ञको सिद्ध करनेके लिये आगमप्रमाण काममें नहीं आ सकता, क्यों कि प्रथम प्रश्न ही यह होता है कि सर्वज्ञ-प्रतिपदिक आगमको आप नित्य मानेंगे या अनित्य ? नित्य आगम-प्रमाण एक भी नहीं है । और यदि कोई हों तो वह अप्रमाण है, क्यों कि " अग्निष्टोमेन यजेत " इत्यादि विधिरूप