________________
४२
जिनवाणी नहीं करते । तब ईश्वर है क्या ?
___ कान्टके आक्षेपका उत्तर देते हुवे हीगल आदि दार्शनिक कहते है कि, विज्ञानके साथ यर्थाथ-प्रकृत सत्ताका विरोध मानना ठीक नहीं है। Real is rational और Rational is real' जो विज्ञानदृष्टि से स्पष्ट समझमें आने योग्य है वह वस्तुतः सत्य है । अब यदि पूर्ण सत्त्व, सर्वज्ञ विज्ञान दृष्टिसे समझमें आता हो तो, सर्वज्ञ पुरुष वस्तुतः हो सकता है, यह मानना ही पड़ेगा। ऑगस्टिन भी कहता है " असन्य, केवल सत्यका विकारमात्र है । असत्य ही सत्यस्वरूप ईश्वरका अस्तित्व सिद्ध करता है। मनुष्यका ज्ञान मर्यादत है परन्तु मर्यादा ही सर्वज्ञत्वको सिद्ध करती है।
ईश्वरके सम्बन्धमें जनोंका कहना भी इसी मतलवका है। अनादि कालके कर्मबन्धनके योगसे जीव अल्पज्ञ है। ज्ञानावरणीय कमौके कारण इसका ज्ञान ढका रहता है । इस आवरणके दूर होते ही जीव अनन्त ज्ञानका अधिकारी हो जाता है-सर्वज्ञहो जाता है। और जो महापुरुष इस कर्मवन्धको तोड़कर मोक्षको प्राप्त हुवे हैं वे सब सर्वज्ञ थे-हैं। कर्म जीवके मूल स्वभावका वाधक है। कर्मवन्धनके कारण ही जीव अल्पज्ञ रहता है । यह वन्धन टूटते ही जीव अपनी स्वाभाविक ज्ञानदगा प्राप्त कर लेता है। सारांश यह है कि जीवोंका बंधन, जीवोंका मर्यादित ज्ञान यह सिद्ध करता है कि जीवोंकी मुक्ति और सर्वज्ञता संभव है।
जीवोंकी संख्या असीम है। प्रत्येक जीव कर्मवद्ध और अल्पज्ञ है। जिस क्षण इस बन्धनदशा और अल्पज्ञतासे छूटे उसी दम वह मुक्त