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चाहिये; तभी हम विशेष सत्यके नजदीक पहुंच सकते है। बौद्ध कर्मवादमें क्लेगावरण और ज्ञेयावरणका खासा वर्णन है, जो अनुक्रमसे जैनसम्मत दर्शनमोह और ज्ञानावरणके समान है। जैनसम्मत गुणस्थान, जो कि कर्मवादमूलक आध्यात्मिक उत्क्रान्तिक्रमका एक सुन्दर निरूपण है, वैसा ही आध्यात्मिक निरूपण बौद्ध परम्परामें भी सोतापत्ति, सकदागामी आदि लोकोत्तर मार्गरूपमे हैं।
किच्यानिटी और इस्लाममें जो करुणावाद (Doctrine of Grace) और प्रायचित्तवाद (Doctrine of Vicarious Atonement) प्रसिद्ध है वह भारतीय परम्परामें बहुत पुराने समयसे सुविदित एवं प्रचलित है। उपनिषदोंमें ईश्वरानुग्रहकी सूचना है। इसी पर तो वल्लभका पुष्टिमार्ग अवलम्बित है। और पुराना सात्वत-भागवत-मार्ग भी उसी तत्त्वको मानता आया है। प्रायश्चित्त पर तो जैन, बौद्ध आदि सभी श्रमणमार्गी भार देते आये है। ___ यहां इसका इतना विस्तार इस लिये किया है कि प्रस्तुत निबंधके अभ्यासी यथासम्भव विशेष गहराईकी ओर जायं ।
कर्मतत्त्वसे सम्बद्ध आठवा निबंध केवल जैन पारिभाषिक शब्दोकी व्याख्या, जैन दर्शनका कर्मविषयक वर्गीकरण इत्यादि परंपरागत वर्णनका
४. श्रीधर्मानन्द कौशाम्बीकृत 'बुद्ध धर्म आणि सघ'; 'समाधिमार्ग' आदि। ५. नायमात्मा प्रवचनेन लभ्यो न मेधया न बहुना श्रुतेन । यमेवैप वृणुते तेन लभ्यस्तस्यैप आत्मा विवृणुते तनू स्वाम् ।।
-कठोपनिषद् १-२-२२ ।