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जिनवाणी तत्पर रहते होंगे और अपने नौकरों तथा दासदासियोंके प्रति प्रेम रखते होगे; मालूम नहीं कलिग-युद्ध में ऐसे कितने ही मनुष्य मर गए होंग; न जाने कितने अपने प्रिय जनोंसे विलग हो गए होंगे । जो जीते बचे है उनके बन्धुओने, जाति भाइयोने और कुटुम्वियोंने न जाने कितने अत्याचार सहन किये होंगे ? इससे इन सवको अत्यन्त दुःख हुवे बिना नहीं रह सकता । देवप्रिय राजा प्रियदर्शीको अपने इन सब अत्याचारोंसे बहुत दुःख होता है, गंभीर मर्मव्यथाका अनुभव होता है। भूतल पर ऐसा एक भी देश नहीं है जहां बाहरण, श्रमण और अन्य धर्मपरायण लोग न वसते हो । ऐसा भी कोई देश न होगा जहां मनुष्य किसी न किसी एक धर्मका अनुसरण न करते होंगे। कलिंगके इस युद्ध में जो इतने अधिक मनुष्य मारे गए है, घायल हुवे है, वांधे गये है और क्रूरताके भोग हुए है उनके लिये देवप्रिय राजाको आज हज़ार गुनी अधिक पीड़ा होती है, उसका चित्त शोकमग्न हो जाता, है । आज अब देवप्रिय समस्त प्राणियोंकी रक्षा और मंगलकी भावना रखता है । वह चाहता है कि, सब प्राणियोंमें दया, शांति और निर्भयता रहनी चाहिये । देवप्रिय राजा इसे धर्मकी जय मानता है। देवप्रिय अब अपने राज्यमें और सैकड़ों योजन दूरवाले सीमा पर स्थित प्रदेशोंमें इस प्रकारकी धर्मविजयको प्रवर्तित करनेमें आनन्दित होता है । यवनराज एन्टियोकासके राज्यमें तथा उसके राज्यको सीमाके आगेवाले टोलेमी, ऐन्टिगोनस, मेगास और एलेकजेण्डर, इन चार नृपतियोंके राज्योंमें; दक्षिणमें चोलराज्य और पांड्यराज्यमें एवं ताम्रपर्णी तक समस्त स्थानोंमें विशवजि, यवन, काम्बोज, नाभाक, नभपंथी,