________________
ईश्वर" इस लेखका है। "जैन विज्ञान " नामक लेखको तीसरा और "जीव" शीर्षक लेखको चतुर्थ स्थान दिया जाना चाहिये । भारतीय दर्शनका कौनसा स्थान है, यह वात जैन दर्शनके अभ्यासीको सर्वप्रथम जाननी चाहिये । ईश्वरका प्रश्न जिस प्रकार व्यापक है, उसी प्रकार रोचक भी है। जैन दर्शनका स्थान ज्ञात होनेके पश्चात् इस प्रश्नके सम्बन्धमें जैन मत जाननेकी आवश्यकता है। तत्पश्चात् समस्त जैन तत्त्वोंका प्रश्न आता है, जिनका स्पष्टीकरण "जैन विज्ञान " लेखमें हो जाता है। "जीव" विषयक जैन मान्यता जाननेकी इच्छा शायद इससे पूर्व भी उत्पन्न हो, परन्तु इस मान्यताकी चर्चा इतनी सूक्ष्म रीतिसे तथा न्यायकी परिभाषामें की है कि, इस लेखको अन्तमें रखनेसे साधारण पाठकोंकी रुचि और समझशक्तिका विकास - जो प्रथमके तीन लेखोके पढ़नेसे हुवा होगा-चौथे लेखको समझनेमें सहायता देगा एवं तर्ककी सूक्ष्मता तथा न्यायकी परिभाषा साधारण श्रावकके उत्साहको मन्द नहीं करेगी।
यहां लेख तो केवल चार ही है, और यह भी नहीं कहा जा सकता कि वे सब पूर्ण ही है, तथापि साधारणतः यह कहा जा सकता है कि, जैन दर्शन संबन्धी समस्त तात्त्विक प्रश्नोंना इनमें समावेश है। ऐसा मालम होता है कि ये लेख मानों वाचक उमास्वातिके 'तत्वार्थ' और उसकी टीकाओंका तुलनात्मक समर्थ नही है। इन लेखोंसे तत्वार्थगत समस्त मुख्य विषयोका आधुनिक शैलीसे स्पष्टीकरण हो जाता है। इन्हे पढनेके पश्चात् कोई जैनेतर भी 'तत्वार्थ' पढे तो उसे उसके समझनेमें बहुत सुविधा होगी।