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भगवान पार्श्वनाथ
१७१ एक पुण्यरात्रिको वामादेवीने १४ स्वप्न देखे। स्वप्न देखनेके 'पश्चात् जागृत होकर महारानीने स्वप्नका वृत्तान्त राजासे कह सुनाया। राजा जानता था कि जब तीर्थकर, चक्रवर्ती गर्भ में आते हैं तब उनकी माता इस प्रकारके शुभ स्वप्न देखती है। वाराणसीके महाराजा एवं देवलोकके देवोंने यह उत्सव बडे आनन्दके साथ मनाया।
नौ मास पूरे होने पर पौष मासमें कृष्ण पक्षकी दशमीके दिन वामादेवीने पुत्ररत्नको जन्म दिया। इसी समय इन्द्रका आसन हिल उठा, दिशाओंके मुख हतिरेकसे देदीप्यमान हो गये। नारकीके जीवोको भी एक घड़ीके लिए सुख प्राप्त हुवा । वायुकी तरंगोमें प्रमोदकी मादकता व्याप्त हो गई। तीनों भुवनोंने अपूर्व उद्योतका अनुभव किया। पुत्रका नाम श्रीपार्श्वनाथ रक्खा गया।
प्रभावती कुशस्थलके राजाकी राजकन्या थी। एक दिन वह सखियोंके साथ वनक्रीडाके लिए निकली। वहां उसने किन्नरियों द्वारा गाई जाती हुई श्रीपार्श्वकुमारकी गुणगाथा सुनी। उसी दिन उसने पार्वकुमारके अतिरिक्त किसी अन्यसे विवाह न करनेकी प्रतिज्ञा करली। ___कलिंग देशाधिपति प्रभावतीको अपनी बनाना चाहता था। उसने प्रसावतीके पिता प्रसेनजितके राज्यके आसपास घेरा डाल दिया। नगरके आवागमनके मार्ग बन्द हो जानेके कारण कुशस्थलकी प्रजा भयंकर त्रास पाने लगी । कलिंगसेनाके सहन प्रमादका लाभ उठाकर मन्त्रीकुमार कुशस्थलसे भाग निकला। उसने जाकर पार्श्वकुमारके पिताको इस आपत्तिका हाल सुनाया। अश्वसेनने युद्धकी तैयारी कर दी।