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जिनवाणी युद्धदुन्दुमि वजा दी। महाराजा अरविन्दने राज्यतन्त्र मरुभूतिको सौंपा
और स्वयं सेनाके साथ मैदानकी और चल दिया। मरुभूतिकी विद्यमाननामें राजाको राज्यकी कुछ भी चिन्ता न थी।
राजा अरविन्द युद्धमें गये और राज्यमें कमठके अत्याचार पराकाष्ठाको पहुंचने लगे। उसने सोचा, राज्यतन्त्र मेरे सहोदरके हाथमें है, फिर मुझे पूछनेवाला कौन है ?
___ कमठ विवाहित था। उसकी स्त्रीका नाम वरुणा था। तथापि वह अपने छोटे भाईकी स्त्रीके रूप-लावण्यको देखकर कामान्ध हो गया।
एक वार कमठने देखा-वसुंधरा उद्यानमें निःशंका हो कर घूम रही है । न जाने वह कवतक टिकटिकी लगाए उसकी ओर देखता रहा, पर देखनेमात्रसे उसे तृप्ति न हुई। वसुंधरा नजरोंसे ओझल हुई तब कमठने एक ठंडी सांस छोड़ी।
कमठके मित्र कलहंसने उसे वहुतेरा समझाया : "भाई, परस्त्री तो माताके समान होती है, अपने छोटे भाईकी स्त्री तो पुत्री ही मानी जाती है।" पर कमठकी कामतृषा शान्त न हुई।
"प्राण जाय तो चिन्ता नहीं, एक बार वसुन्धराको स्वपत्नी न बना सका तो यह जीवन ही व्यर्थ है । " कमठका शरीर कांप रहा था, और उसकी आंखोंसे अस्वाभाविक तेज टपकता था। .. ____ कलहंसने जाकर वसुन्धराको खबर सुनाई : " यहीं पासवाले लतामंडपमें तुम्हारा जेठ मूर्च्छित पड़ा है, तुम्हें उसकी सुश्रुषाकें लिये जाना चाहिये । " कलहंसके कपटवाक्योंको सुनते ही वसुन्धरा घबराकर कमठके पास दोड़ गई । हरिणी व्याघ्रके पंजेमें फंस जांय ऐसी हालत