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जीव
१५३ खंडों और ६८ आधे पुष्कर द्वीपमें है। विदेह क्षेत्रकी ३२ कर्मभूमियोंमेंसे प्रत्येक कर्मभूमि, भरत तथा ऐरावत क्षेत्रके समान विजयाई (वैताढ्य) पर्वत और दो दो नदियोंसे ६ खण्डोंमे विभक्त है । विदेहक्षेत्रके चक्रवर्ती इन छः खण्डोंके विजेता होते है।
जिस स्थानमें वाणिज्य अथवा कृषिके द्वारा आजीविका प्राप्त नहीं की जाती, जहां राजा और प्रजामें कोई भेद नहीं है, और जहां मोक्षमार्ग संभव नहीं है वह भोगभूमि है। भरत तथा ऐरावत क्षेत्र, अवसर्पिणी कालके प्रथम तीन आरों तक भोगभूमि ही थे। ये दोनों क्षेत्र अवसर्पिणी कालके चौथे आरेके आरम्भसे कर्मभूमिमें परिणमित हो गए हैं। एवं अवसपिणी काल पूर्ण होनेके पश्चात् उत्सर्पिणी कालके प्रथम तीन आरों तक ये दोनों कर्मभूमि ही रहेगे।
विदेहक्षेत्रमें मेरु पर्वतके पूर्व तथा पश्चिममें ३२ कर्मभूमि है। इसके अतिरिक्त इस पर्वतकी उत्तर-दक्षिण दिशामें भी दो उत्कृष्ट भोगभूमि हैं। वे क्रमशः देवकुरु और उत्तरकुरु कहलाती है । हैमवत और हैरण्यवत क्षेत्र जघन्य भोगभूमि तथा हरिवर्ष रम्यक क्षेत्र मध्यम भोगभूमि हैं। जघन्य मोगभूमिमें जीवका आयुःपरिमाण एक पल्य, मध्यममें २ पल्य और उत्तम भोगभूमिमें ३ पल्य होता है । जम्बूद्वीपकी छः भोगभूमियोंके अतिरिक्त धातकी खंडों १२ और पुष्कर द्वीपार्द्ध १२ भोगभूमि है। इस प्रकार अढाई द्वीपोंमें सब मिलकार ३० भोगभूमियां है। इन अढाई द्वीपोंके अतिरिक्त अन्यत्र सब जगह भोगभूमि है, परन्तु फर्क इतना कि वहां कोई मनुष्य नहीं है । इसे कुभोगभूमि भी कह सकते है। अन्तद्वीप और म्लेच्छस्थान कुभोगभूमि ही हैं।