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जीव
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थालीके समान गोल होनेके कारण इसके भीतरके पर्वत एक सिरे से
दूसरे सिरे तक फैले हुवे है । धातकी खंड कंकण अथवा चक्रके समान है । यह खंड़ पहियेके आरोंके समान पर्वतोंसे विभक्त है। पर्वतोंक मध्येका प्रदेश एक-एक क्षेत्र माना जाता है। इस खंडमें १२ पर्वत, दो मेरु और १४ क्षेत्र हैं । इसमें ६८ कर्मभूमि और १२ भोगभूमि है ।
धातकी खंडके आगे कालोद समुद्र और उसके बाद पुष्कर द्वीप आता है । कालोद समुद्रका विस्तार आठ लाख योजन है । और पुष्कर द्वीपका विस्तार १६ लाख योजन है । पुष्कर द्वीपके आधे भागमें अर्थात् आठ लाख योजनके भीतर घातकी खंडके समान ही क्षेत्र और पर्वत है। शेष आठ लाख योजनमें क्षेत्र विभाग आदि नहीं हैं। पुष्कर द्वीपके ठीक बीचमें मानुषोत्तर नामक एक पर्वत है । इस पर्वतके बाहर मनुष्यकी गति या आवास नहीं है। वहां विद्याधर और ऋद्धिप्राप्त ऋषियोंकी भी पहुंच नहीं है।' इसी लिये इसका नाम मानुषोत्तर रक्खा गया है । मानुषोत्तर पर्वतके बाहर केवल भोगभूमि है। वहां पशु ही रहते हैं ।
जम्बूद्वीप, धातकी खंड और आधे पुष्कर द्वीप अर्थात् अढाई द्वीपों और लवणोद तथा कालोद समुद्रमें मनुष्य जाति आ जा सकती है। मनुष्य जातिके इस आवासस्थानमें ९६ अन्तद्वीप हैं। इन अन्तद्वीपों में
१. वहां विद्याचारण और जधाचारण जा सकते हैं । ( भगवतीसूत्र ) २. श्वेताम्बर साहित्य में ५६ अन्तद्वीप लिखे । और वहां भी केवल कर्मभूमि- सुभोगभूमि होनेका विधान है; वहांके मनुष्य मनुष्य के आकारमें ही हैं।