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जैन विज्ञान
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है। इसमें पर्वत 'धर्मी' किंवा 'पक्ष'; वह्नि 'साध्य'; और घूम 'हेतु', 'लिंग ' अथवा 'व्यपदेश ' है । पाश्चात्य न्यायप्रन्थोंमें Syllogism के अन्तर्गत इन्हीं तीन विषयोंकी विद्यमानता दिखती है । इनके नाम Minorterm, Major term और Middle term है। अनुमान व्याप्तिज्ञान पर - अर्थात् अग्नि और घूममें जैसा अविनाभाव संबन्ध है उस पर -- प्रतिष्ठित है । यह व्याप्तितत्त्व पाश्चात्य न्यायके Distribution of the - middle term के अन्तर्गत है । जैन दृष्टिसे अनुमानके दो भेद है(१) स्वार्थानुमान और ( २ ) परार्थानुमान । जिस अनुमान द्वारा अनुमापक स्वयं किसी तथ्यकी खोज करता है उसे स्वार्थानुमान, और जिस वचन - विन्यास द्वारा उक्त अनुमापक अन्यको वह तथ्य समझाता है उसे परार्थानुमान कहते है । ग्रीक दार्शनिक Aristotle अनुमानके तीन अवयव बतलाता है- (१) जो जो धूमवान् है वह वह्निमान् है - (२) यह पर्वत धूमवान है, (३) अत एव यह पर्वत वह्निमान है । बौद्ध · अनुमानके तीन अवयव इस प्रकार बतलाते है- (१) जो धूमवान् है वह वह्निमान् है । (२) यथा महानस ( ३ ) यह पर्वत धूमवान् है । मीमांसक भी अनुमानके तीन अवयव मानते है । इनके मतानुसार अनुमानके ये दो रूप हो सकते हैं : प्रथम रूप - (१) यह पर्वत वह्निमान् है, (२) क्यों कि यह धूमवान् है, (३) जो धूमवान् होता है वह वह्निमान् होता हैं, यथा महानस । द्वितीय रूप - (१) जो धूमवान् है वह वह्निमान् है, यथा महानस । यह पर्वत वह्निमान् है । नैयायिक अनुमानको पञ्चावयव मानते हैं। उनके मतानुसार अनुमानका आकार यह होगा - ( १ ) यह पर्वत वह्निमान् है, (२) क्यों कि यह धूमवान् है । (३) जो