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- चौवीशी .. सुख संपति कउ कारण प्रभुजी,
ताकु समरण करहु सदाई ॥२ना.॥ कहा वहुतेरे जउ सुर सेवे, निज कारज की सिद्धि न पाई ।
- 'प्रभु जिनहरप एक सिर करीयइ,
बोधिवीज सिव सुप कुदाई ॥३ना.॥
नेमिनाथ-गीतम्
राग-रामगिरी नेमि जिन यादव कुंकुल तायु ।
एक ही एक अनेक उधारे,
कृपा धरम मन धायें ॥१॥ विषय विपोपम दुप के कारणे, ... जाणि सवई सुप छायु ।
संयम लीयौं प्रभु हितं कारण,
मदन सुभट- मद- गायु ॥रने.॥ आप तिरे राजुल कुतारी, पूरवः प्रेम. समायु ।।
कहइ जिनहरप हमारी वरीयां, क्या मन मांहि विचायु ॥३॥