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जिनहर्ष-ग्रन्थावली -पार्श्वनाथ-गीतम्
राग-ललित ___ मान तजी मेरे प्राणी वेर बेर कहुं वाणी । काहे मूढ भजनकु आलस करइ हइ ।
अउर कोऊ नावइ काम सगेस इंण दाम धाम,
नाम एक प्रभुजी के काम सब सरइ हइ ॥१मा।। भवकु भंजणहार सुषकु देवणहार । ताकु हीयइ धारिजउ तुकरम सुडरई हइ ।
जपि जपि जगनाथ यउ तउ हइ मुगति साथ ।
जाकउ दरसण देषि अंपीयां ठरइ हइ ॥रमा।। अइसउ प्रभु कोई अउर देख्यु हइ अपर ठउर । ग्यान कु भंडार तजि काहे भूल उपरइ हइ ।
तेवीसमउ प्रभु पास पूरइ हइ सकल आस । कहइ जिनहरप जनम दुप हरइ हइ ॥३मा.।। महावीर-गीतम्
राग-केदारउ मे जाण्यु नही भव दुप अइसउ रे होइ । मोह मगन माया मे घूतउ, निज भवहारे दोइ ॥१मः।। जनम मरण ग्रभवास असुचिमइ, रहिवनु सहिवनु सोइ । भूष त्रिपा परवश वध बंधन, टारि सके नही कोई ॥२म.॥