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जिनहर्ष - प्रन्थावली
उर सकल तजि कथा विराणी,
निसिकरि प्रभुजी की कहाणी ॥। १ स्वा. ॥
भव वन सघन अनि प्रजलाणी,
मिथ्यारज व्रज पवन उडाणी || स्वा. || जइसड़ तिल पीलण कु घाणी,
तैस करम पीलण प्रभुवाणी || २स्वा. || क्रोध दवानल पावस पाणी,
उज्जल निरमल गुणमणि खाणी ।। स्वा. || प्रभु जिन हरष भगति मन आणी,
साहिब उ अपणी नीसाणी || ३ स्वा. ||
संभवनाथ - गीतम्
राग-गौडी
व मोही प्रभु अपणउ पद दीजड़ । करुणा सागर करुणा करि कह,
निज भगतन की अरज सुणीजइ ॥ १८. ॥
तुम हउ नाथ अनाथ के पीहर,
पणे जन भव त तारी जइ ।
तुम साहिब मई फिरु उदासी,
तर प्रभु की प्रभुता क्या कीजड़ || २ ||
तुम हउ चतुर चतुर गति के
दुप,