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चौवीशी आदिनाथ-गीतम्
राग-वेलावल रे जीउ मोह मिथ्यातमई,
क्या मूभयउ अग्यानी। प्रथम जिनंद भजइ न क्यु,
शिव सुप कु दानी ॥१२॥ अउर देव सेवइ कहां
विषयी केई मानी। तरि न सकइ तारइ कहा,
दुरगति नीसानी ॥२॥ तारण तरण जिहाज हह,
प्रभु मेरउ ज्यानी । कहे जिनहरप सु तारि हइ, भवसिंधु सुन्यानी ॥३रे.॥ अजितनाथ-गीतम्
राग-भैरव स्वामि अजित जिन सेवइ न क्यु प्राणी ।
जउ तु चाहइ शिव पटराणी स्वा.ना