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-- चौवीशी ___ सो तनु मई अब सही नस कीजइ । -- संभव जिन जिनहरप कहे प्रभु,
दास निवाजी जगत जस लीजे ॥३.॥ अभिनन्दन-गीतम्
राग-नट मेरउ प्रभु सेवक कु सुपकारी । जाके दरसण वंछित लहीये,
सो कइसई दीजइ छारी ।।१मे.॥ हिरिदइ धरीयइ सेवा करीयइ,
परिहरि माया मतवारी। तउ भव दुप सायर तई तारइ,
पर आतम कउ उपगारी ॥रमे।! अहसउ प्रभु तजि ान भजइ जो,
काच गहइ जो मणि डारी । अभिनंदन जिनहरष चरण गहि, परी करी मन इकतारी ॥३मे.।। सुमतिनाथ-गीतम्
राग-केदारउ जीउ रे प्रभु चरण चित लाइ । सुमति चितथरि सुमति जिनकु',