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जिन हर्ष - ग्रन्थावली
श्री मुनिसुव्रत जिन स्तवन
राग - विहागरौ
ऐसौ प्रभु सेवो रे मन ज्ञानी ।
घट घट अंतर जिन लय लाइ,
आप रह्यौ ठौर छानी रे, शुद्ध ध्यानी ॥१ऐ . ॥
काहू क्रू दे सुखियन कीनौ,
कहियतु है बड़दानी रे शुद्ध ध्यानी । किस ही कुळ हसि बात न बूझै,
मन वालो अभिमानी रे शुद्ध व्यानी ॥ २ऐ . ||
तीन लोक में प्रभुता जाकी,
रिकनै सहकांनी रे शुद्ध ज्ञानी ॥
कहै जिनहरख स्वामी मुनिसुव्रत,
छै अपनी राजधानी रे शुद्ध ध्यानी ।। ३ऐ. || श्री नमि जिन स्तवन
राग-गौडी
aar मैं नमि नाथ निहार्यो ।
देखत ही रोमाञ्चित तनु भयौ,
जाए कि अमृत रसभरि ठार्यो || १ नै . ॥
सुरतरु यम सुख पूरण साहिब,