________________
1
चौवीशी
ज्यु' तौकु' भी महिर करैगो, तारैगो भ्रम धोरी रे |
कहै जिनहर से रि साहिब, राखैगौ पति तोरी रे ॥ ३क. ॥
श्री मल्लि जिन स्तवन
राग - मालवी गोडी
मल्लिनाथ निसनेही निरंजन, कैसे करियै प्रीती रे ।
कहै न किसी बात दिल की, कठिन जाकौ चीत रे ॥ १म. ॥
दिल साच सौ दिल साच राखै, एह जग की रीति रे |
एकंग कैसे नेह निवहै,
समझ देखो मीत रे ॥ २म. ॥
दीप देखि पतंग जरि है,
मच्छ जलधर नीत रे ।
भांति प्रभु जिनहरख एैसी,
मांजि है क्युं सीति रे ।। ३म. ॥
१ त्यु ।
१३