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चौचीशी
मन कौ मान्यौ सैंण सनेही, जिन - हरख सगीनौ ॥ ३ प्र . ॥
श्री शान्ति - जिन - स्तवन राग - सारंग मल्हार जाति
कैसे करि पहुँचाऊ संदेश | जिन देसन निवसै सोलम जिन, जाय न को तिण देस ॥ १ कै . ॥
पंथ विषम विषमी है धरणी, घ घाट विशेस |
कहै न कोऊ सिलाम' न वतियां, ताथै बहुत देस ॥ २ कै ॥ यही लाख पौण दिशि, करिहुं चित्त प्रवेश | जौ कबहु जिनहरख मिलै प्रभु, जब करु मन पेस ॥ ३ कै ॥
श्री कुंथु - जिन - स्तवन
राग - खभायती
मन मोहन प्रभु की मूरतियां ।
निरखि निरखि नयनन सु अनुदिन, कुसलात न वतीये 1
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