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चौवीशी सुविध नाथ जिन हरख प्रभु मोहि, दीजै शिव सुख माम सु ॥३॥ श्री शीतल-जिन-स्तवन
राग-तोडी जब तै मूरति दृष्टि परी री। कूर कहुँ तौ तेरी ही सु,
तव तैं छतियां मेरी ठरी री ॥१ज.॥ नयन न अटके रसिक सनेही,
__ हटकै न रहै एक घरी री। अनमिष देखि रहै प्रभु सूरति,
सुधि बुधि मेरी सहु विसरी री ॥२ज.॥ तुझ सुनेह लग्यो-दिल' भीतर,
. और वात दिल तें उतरी री। कहै जिनहरख शीतल जिन नायक, ... तू है मेरे जिइ की जरी री ॥३ज.॥ श्री श्रेयांस-जिन-स्तवन
राग-गूजरी मेरौ मोह्यो श्रेयांस जिनवर । देखत ज्योति होत मन सुप्रसन्न,
१ सुधरी, २ उर अतर,।