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चौत्रीशी
तैं मेरो मन छिन में छिनायौ, सो फिर मेरे पास नायौ । व. ।
शा पूरण विरुद कहायौ,
कहै जिनहर संभव जिन मायौ ॥ ३ ॥ . ॥ श्री अभिनन्दन - जिन - स्तवन
राग - सामेरी
मेरो एक संदेशो कहियौ । पाड़ पर मन वीर वटाऊ,
विच में विलम्ब न रहीयौ ॥ १ ॥ मे. ॥
खूनी खून घणा मंई कीना,
सुप्रसन्न होड़ कै सहयौ ।
निगुणौ तो पण तेरो चेरौ,
मोकु ले निरवहीयौ ॥२॥ मे. ॥ भव सायर में है जेहूँ,
करुणा करि कै' गहियौ ।
अभिनन्दन जिनहरख सामेरी,
आरति चित्ता दहीयाँ || ३मे. ॥
श्री सुमति - जिन - स्तवन
राग - वैराडो
समरि समरि सुख लालची मर्ना ।
१ कर
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