________________
जिनहर्ष ग्रन्थावली
नव वाडनी समाय दूहा
1
श्री नेमीसर चरण युग, प्रणमं उठी प्रभाति । वांचीशम जिन जगतगुरु, ब्रह्मचारि विख्यात ॥ १ ॥ सुन्दरि अपछरि सारिखी, रति सम राजकुमारी । भर जोवन में जुगति सुं, छोड़ि राजुल नारी ॥ २ ॥ ब्रह्मचर्य जिण पालियां, धरता दूधर जेह | तेह तणा गुण वर्णवूं, जिम पावन हुवे देह || ३ | सुरगुरु जो पोते कहै, रसणा सहस बणाय । ब्रह्मचर्य ना गुण घणा, तो पिण कथा न जाय ॥ ४ ॥ गलित पलित 'काया थई, तो ही न मूकै आस । तरुणपण जे व्रत धरै, हुं बलिहारी तास ॥ ५ ॥ जीव विमासी जोय तूं, विषय म राचि गिमारि । थोड़ा सुख नें कारण, मूरख घणो म हारि ॥ ६ ॥ दश दृष्टांते दोहिलो, लाधो नरभव सार | शीयल पाल नत्र वाड़ि सुं, सफल करो अवतार ॥ ७ ॥
४६८
ढाल | मन मधुकर मोही रह्यो ॥
शील सुरतरु सेवियै, व्रत मांही गिरुवो जेह रे । दंभ कदाग्रह छोड़िने, धरिये तिण सं नेह रे ॥ ८ ॥ जिन शासन वन अतिभलो, नंदन वन अनुहार रे । जिनवर वनपालक जिहां, करुणा रस भंडार रे ॥ ६ ॥