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कुगुरु पचीसी.
४६७ गाडां पाखइ न चले भार, गाड़े बइठा करे विहार । ईरज्यासमिति किसी पालेह, कुगुरुतणा लक्षण छइ एह ॥१५॥ हसे धसे वोले पारिसी, मुख धोवइ जोवे आरसी। वेस वणाव करइ निसंदेह, कगुरु तो लक्षण छड् एह ॥१६॥ . रवि आथमता ताई जिमइ, रुसइ रीष दीयां नवि खमइ । न करे कोई पचखाण वलेह, कुगरु तणा लक्षण छइ एह ॥१७॥ सेवे देवी दुरगा मात, वरत करे वइसइ नवराति । पोथी सातसई . वाचेह, कगुरु तणो लक्षण छइ एह ॥१८॥ राति दिवस ओपध आरंभ, चूरण गोली करे असंभ । नाड़ि चिकित्सा वैदग रेह, कगुरु तणा लक्षण छइ एह ॥१६॥ सरस कतूहल कथा चरित्र, वांचे कान करे अपवित्र । सूत्र सिद्धांत न, संभलावेह, कुगुरुतणा लक्षण छइ एह ॥२०॥ पोतइ न चलइ सूधइ राह, परनइ सुध चलावइ काह । चोर चांद्रणउ न सुहावेह, कुगुरु तणा लक्षण छइ एह ॥२१॥ रंधावी ने लीये आहार, असूझता नउ किसउ विचार । जिम तिम करि निज पेट भरेह, कुगुरु तणा लक्षण छइ एह॥२२॥ 'पोतइ कहइ अम्हे छां जती, पिणि आचार चलइ नही रती। अनाचार दिसि निति चालेह, कुगुरु तणा लक्षण छइएह ॥२३॥ पापश्रमण नी परि आचरे, साधु तणी वलि निंदा करे। पाप तणु किम आणइ छेह, कुगुरु तणा लक्षण छइ एह ॥२४॥ कुगुरू पचीसी ए मइ-करी, कहे जिनहरख कुमति परिहरी । मुनि लोयण भोयण प्रमितेह, कुगुरूतणा लक्षण छइ एह ॥२५॥