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जिनहर्ष प्रन्थावली संयम लोर उडावइ खेह,कुगुरु तणा लक्षण छइ एह ॥४॥ धुरि सुं पंच महाव्रत धरे, सव्वं सावज उच्चरे।। चरित्र भंजइ रंजे देह, कुगुरु तणा लक्षण छड् एह ॥शा झूठं बोले लीये अदत्त, चोरी करि ल्यइ परनउ वित्त ।' काम कुतूहल सुं बहु नेह, कुगुरुतणा लक्षण छइ एह ॥६॥ परिग्रह सुं राखइ बहु मोह, धन नइ काज करे परद्रोह । परभवथी बीहे नही तेह, कुगुरु तणा लक्षण छइ एह ॥७॥ असनादिक च्यारे आहार, राते पिणि न करे परिहार । दूषण निज मन न विचारेह, कुगुरु तणा लक्षण छड् एह ॥८॥ पाणी काचं जे वावरे, आप तणा दूपण छावरे । केम तिरइ गुरु किम तारेह, कुगरु तणा लक्षण छइ एह ॥६॥ मोटी पदवी ना जे धणी, लोकां माहे प्रभुता घणी । ते पिणि करणी खोट धरेह, कुगुरु तणा लक्षण छइ एह ॥१०॥ पाप विवरावे चांदणो, गुणहीणा नइ अवगुण घणा । घरवासी नी परि निवसेह, कुगुरुतणा लक्षण छइ एह ॥११॥ चीणीनइ थिरमां पांगरइ, भेष लेई वे तोरा करे । त्रिसई पिणि मिलती नही घरेह, कुगुरु तणा लक्षण छइ एह॥१२॥ गृहस्थ तणी परि करे व्यापार, बेचे पुस्तक वस्त्र अपार । व्याज वटइ धन ऊपावेह, कुगुरु तणा लक्षण छड् एह ॥१३॥ आठ पहुर छत्रीसे घडी, पंच प्रमादां सुं प्रीतडी। ..', किरिया पडिकमणुं न कदेह, कुगुरु तणा लक्षण छइ एह ॥१४॥