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चौबोली कथा कवित्त विक्रमादीत राजा कहै, कवन पीढ़ नारी वर-११ । कहई सिंहामण सांमि, वात- एहवी सुहावै । कह न सकं बीहतो, नारि बोभणनइ आवइ । चौवोली कुंयरी रीस करि इण परि "जपे। गहिला कांइ गिवार, वयण असमझ पयंपै । सूत्रधार ईस सूई सहज, चांभण पिता सु जाणोयइ । जिनहरष नारि सोनार री, बीजी कथा वखाणीयइ-१२ .
॥ दोहा ॥ · अथ तीजै पहुँर दीयौ वोलायौ लाट देस भोगवती, नगरी भल नर नारि । देवी रौ तिहां देहरौ, महिमा' नगर मझार-१३
॥ कवित्त ॥ चरचे नृप चामंड, भगति,सं होमि भली परि । वर दीधौ तिण वार, मात दें पुत्र मया करि । देवी वर दीकरौ, हुयो "महिमा जग मोहइ । तिणपुर धोबी एक, तासु घरि कन्या सोहै । अनगाम तिणे धोवी तिका, दीधी विरहाकुल थयौ । जागतौ पीठजग जाणिजे, देवी प्रासादई गयौ–१४ मात चढाइस सीस, 'रजक जौ कन्या "देसी । अरेज करें आवीयौ, 'सबल सुरवर सुविसेसी। परणाई तिण सुता, रजवा-सुत पूंगी रैलीयां ।
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