________________
४३८
जिनहर्प ग्रन्थावली धुंकल सवलौ धूखे, जाइ क्रिण बतइ न छंडी। कहि झार कुण धणी ? राय विक्रम , पयासे । साथि बल्यौ तेहनी, - तांम चौबोली भासह । काइ रे मूड कूड़ी चवइ, तेतो भाई सारिखो। जिनहर्ष पिंड भरीयौ जिय, नारि तासु ए पारिखो-८ अथ बीजे पहुर सिंघासण बोलायौ
॥हा॥ जोवां परदेसइ जई, करम तणो अधिकार । चार मित्र मिलि चालिया, वारू करे विचार-६
॥ कचित्त ॥ . च्यारे मिल चालीया, देस सुत्तार दरजी।। त्रीजौ कहि सोनार, वित्र सहु जाण सुकजी । चासौ वसीया वेड़ि, वांधि पहुरा च्यारेइं । धुर बैठो सूत्रधार, कठ इक चंदन लेई । निज राछ काढिनइ पूतली, कीधी कन्या जेहवइ। -: पूरइ पहुर सूतौ तिको, जाग्यौ सूजी जेहर-१० देखि पूतली नगन, चीर सीवी पहिरायौ। । ओ सूतौ अधि रात; अनइ सोनार जगायौ। : घड़ि ग्रहणा घाट, अंग सिणगार · वणायौ । - पहराइत पौडीयौ, - विप्र तिन; ठाइ पठायौ । - सरजीत कीध पंचालिका, माहो मै झगड़ौ करइ ।। .