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जिनहर्ष ग्रंथावली खबर करण संधी अये, पुर में फिर नृपत्ति ॥५॥ - एक दिवस माली घरहि, छांनी रह्यौ छंछाल ।
सुणो करत सिंह चारता, मालणि मालागार ॥५३॥ मालणी वाइक-बार बरस तुम कहाँ रहे, कहां गये थे कंत ।
अहो त्रीति तुम कारिसी, हसि हसि यं पूछंत ॥५४|| कबहूं मोहि चितारिते, कहत मालिणी भाख । तुं सुझ कबहु न विसरती, ज्यं वीरोचन साख ॥५॥ बात कही मालणि कहै, अजहू है निसि नारि । सठ तिय हठ गहि कै रही, बात कहहि तिणिवार ॥५६॥ अरिमरदन संवही सुण्यो, सुणी श्रवण सब बात ।
करि सहिनाण गयौ महल, चर भेज सुप्रभात ।।५७|| घ्यादा वाइक-रे हो मालि तेरि है, तो कुं श्री महाराज ।
चालै क्युं न उतावरी, डीलन का नहीं काज १५८॥ चैण सुणत वेदल भयौ, गयौं जिहां नरराइ ।
माली कै कर जॉरि के, जाई लग्यो प्रभुपाई ॥५६॥ राजा बाइक-सुणि आरामिक नप कहै, आज अस्थी राति । ___अपणो प्यारी सुं कहौ, क्या करते थे बात ॥६०॥ माली बाइकारामि साचौ कहै, कैसी कहीय वात ।
नंदराई कुं मारि कै, वीरोचन को घात ॥६॥ ' 'चाकर भेजे आपण, सूधी बातः सिखाइ । . . वीरोचन परधान कुं, ल्यावौ जाइ वुलाइ ॥६२ ॥