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'नंद बहुत्तरी
४३३ मंत्री मुझ भय मंजिया, नृप आयौ तिणि ठाम । छागल जल भरि ल्याइ हूँ, राजि करौ विश्राम ॥४२॥ अक्षर देखे - जाइ, के, वात भई विपरीत । राइ अबै मुझ मारिसी, मंत्री भयौ भयभीत ॥४॥ आयौ नृप सूतो निरखि, करग झाल करवाल । नंद नपति मंत्री ' हण्यो, पूर्यो सरवर पाल ॥४४॥ माली देखत ही डर्यो, चढ्यो वृख परि नासि । साखा कंपी रुख की, मंत्री चित्त चिमासि ॥४शा नर अथवा वानर किणिहि, साख हलाई जास। होणहार तउ होइसी, साखा भेद विणास ॥४६॥ माली तौ किहि दिसि गयौ, आयौ मत्री गेह ।
प्रजा लोक मिलि पूछिहै, राइ कहाँ कहै तेह ॥४७॥ मंत्रीवाइक-कहा कहूं मंत्री कहै, भूप हण्यौ वाराह ।
पाछै सुत नही राइ के, पाट बैसारे ताहि ॥४८॥ नगर लोक मिलिक दीयो, वीरौचन कं पाट । इक राणी के गर्भ है, सो मन मांहि उचाट ॥४६॥ सुत जायौ पूरण दिवस, अरिमरदन 'तसु नाम । चंदकला वाधे कला, रूप अधिक अभिराम ॥५०॥ वार वरस बोले कुमर, तब ले थाप्यौं पाट । - मात कहौ मुझ तातकू, मरण भयौ किण घाट ॥५१॥ माता वाइक-मात सुणी जैसी कही, तौही न मानै चित्त ।