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________________ नंद बहुत्तरी ४३५ द्वार रोकि चाकर रहै, चालि चालि मंत्रीस । तुझ कुं राई वुलाइ है, तुरत लखी मन रीस ॥६३॥ प्रभु कं मिलण चल्यो ज., कुसुकन भए अपार । फिरि पाछो गृह आइक, कीनौ मरण विचार ॥६४॥ मंत्री वाइक-च्यारौं पुत्र बुलाइ के, छ है मंत्री सीख । मो मारौ तौ रज रहे, नहीं तर मांगो भीख ॥६॥ तुम्हकू कहिकै जाइ हुं, राई तणे दरबार । कुनजर देख्यो राइ की, तौ हणीयौ खगधार ॥६६॥ चौथै सुत. वीरौ गह्यो, गयौ दरवार कुलीन । फिरि बैठौ नप देखि के, घाउ तर्फे उण कीन ॥६॥ फिटि फिटि मूरख क्या किया, कीनो बहुत अकाज । राजि हरामी तात सं, नहीं हमारे काज ॥६८॥ खुसी भयौ नप सुणतही, बहुत वधारूं तुझ । सांमिधरम्मी तुं खरो, साचौ सेवक मुज्झ ॥६६॥ ताहि दीयो परधान पद, बाजी रही सुठाह । अरिमरदन मान्यौ बहुत, प्राक्रम अंग अथाह ॥७०॥ पुन्य पसाय- सुख लह्यौ, सीधा वंछित काज । कीनी नंद बहुत्तरी, संपूरण जसराज ॥७॥ सत्तरै से चवदोतरै, . काती मास उदार । की जसराज बहत्तरी, वील्हावास मझार ॥७२॥ ... इति श्री नंद बहुत्तरी दूहाबंध वारता समापता । [पत्र २ अभय जैन ग्रन्थालय ]
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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