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नद वहुत्तरी
४३१ ऊठि चल्यो तिहां थी तुरत, पहिरि पानही तास।
वीसारी निज यांनही, आयौ पौरि उदास ॥२१॥ राजा वाइक-प्रतोहार मैं नृप कहै, करणाभ्रण दे वीर ।
काम हमारो नां भयौ, भयो न जोवन सीर ॥२१॥ पोलिया वाइक-भाचे पाणी धौकरौ, भा रहौ तृपाल ।
पांणी मैले धण दीया, ऊरण भए गुवाल ॥२३॥ आयौ कंडल हारि के, तिण अवसर तिणवार । पदमणि सूती निसि समैं, आयौ तासु भरतार ॥२४॥ भूप पानही देखिकै, मंत्री चमक्यौ चित्त । दीसत वात विराम की, आयौ गेह नृपति ॥२५॥ चंचल भमरी पीग ज्यु, चंचल कुंजर कन्न । चंचल सलिता वेग ज्यं, चंचल अस्त्री मन्न ॥२६॥ 'गुपति राखि नृप पानही, सेज्या आइ वइट। जागी आलस मौरि के, नयणा प्रीतम दिह ॥२७॥ चरणां लागि ऊठि कै, पदमणि वधतै प्रेम | हरख बहुतसुं हिल मिले, पूछि कुसलात खेम ॥२८॥ वीरोचन उह पानही, सात सावट वीटि । भेट्यौ नृप ले भेटणी, भई परस्पर मीटि ॥२६॥ भूप लजाणौँ देखि के, तव अधो मुख कीध ।
मंत्रि कहत हस्ती त्रिपत, पाणी पीध न पीध ॥३०॥ राजा वाइक-तिरखातुर हस्ती गयौ देख्यो सरवर सीध ।