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________________ th ४३० जिनहर्ष ग्रंथावली तुम्ह परदेश सिधाइ के, ल्याव अजब तुपार ॥१०॥ करि सलांम तहां तैं चाल्यौ, करि निज त्रिवसुं सीख | राजा बहुत खुसी भयौ, त्रिषत पीयें ज्युं ईख ||११|| - नृप आयौ गृह निसि समौं, पोरि जरी तिहिं बार । देखि कहत प्रतिहार पैं, ऊठि उघारि किमार ॥१२॥ पोलिया बाइक - या तो पोरिन ऊघरे, मो पें कहो न कोय । नृप तब आपण कांन के, दीने कुंडल - दोय ॥१३॥ गृह भीतर आयौ जब, तब बतलायौ कीर । नंदराइ पुर मैं धणी, तूं न पिछाणत वीर ॥१४||--- सुआबाइक - कीर पाउ प्रणमैं तवें, भलें पधारे राज । आज महल निज पूत के, आए हो किहि काज ॥ १५ ॥ राजा वाचक- पद्मणितियसुं चित लग्यौ, तिणि आयौ सुकराज । चूक परी तुम्हको सवल, नहीं तुम्हारौ काज ||१६|| राजा बाइक - काहे पर निंद्या करे, बांधी बात न घेरे । तुझें पराई क्या परी, तू अप्पणी निवेर ॥१७॥ यूं कहि नृप आघो चल्यौ, तब बोल्यौ मंजार । कौर कहत रक्षक विषै, सुणि उठी है धारि ॥१८॥ मंत्री त्रिय संचल लह्यौ, तजि लंज्या करि लाजं । अलगी जाइ ऊभी रही, मांहि पधारे राज ॥१६॥ पदमणि वाइक - करि प्रणांम ऐसें कहै, घर नाहीं तुम पूत " -- क्युं आवहो बापजी, तब लाज्यौ रजपूत ॥२०॥ 1
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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